Carbon Emission And Lockdown-आदमी के डर से आगे पर्यावरण की जीत है !
एक सदी बाद एक विश्वव्यापी महामारी को दोहरा कर वर्ष 2020 समय के इतिहास का एक अखाड़ा बन गया। इतिहास में इतने लम्बे समय तक मानव लॉक डाउन की जंजीरों में कभी नहीं बंधा। वर्ष 2020 जहाँ 21 वीं सदी पर एक पहला दाग लगा गया, वहां यह इस जगत को कुछ उजाला भी दे गया। मगर वर्ष के इस उजले पहलू को देखने वाली आँखे दुनिया में कम ही होंगी। 2020 के सबसे उज्जवल पहलू को दुनिया के सामने रखा है हरित गैस उत्सर्जन पर पैनी दृष्टि रखने वाले दुनिया के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिकों के एक आधिकारिक समूह ने। वैज्ञानिकों के प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 में दुनिया ने अपने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 7% की कटौती की है, जो अब तक की सबसे बड़ी कटौती है, जो कि पर्यावरण के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है।
2020 के लॉक डाउन के उन सुखद दृश्यों को हम भूले नहीं हैं। वन्य जीव सड़कों और बस्तियों में विचरण करने लगे थे। घरों की छतों पर मोर नाचने लगे थे। नए-नए पक्षी-पखेरुओं के दर्शन होने लगे थे। हवाओं में मन को झंकृत कर देने वाला संगीत था। नदियों का जल आचमन योग्य हो गया था। सुदूर मैदानों से हिमालय के दर्शन होने लगे थे। धरती अधिक हरी और आसमान अधिक नीला हो गया था। और रात को तारों की चमत्कृत टिमटिमाहट ब्रह्माण्ड के विराटतम घर में रहने की अनुभूति कराने लगी थी। और इसी बीच हमारे कार्यकलापों से उत्सर्जित होने वाली कार्बन डाइऑक्साइड के घटने की घटना से यह सत्य भी सामने आया है कि 2020 को दोनों रूपों – बहुत बुरे और बहुत अच्छे – में याद किया जाएगा।
अर्थ सिस्टम साइंस डाटा जर्नल में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार दुनिया ने 2020 में अनुमानतः 34 अरब मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में उत्सर्जित की है, जो 2019 के 36.4 अरब मीट्रिक टन से लगभग 7% कम है। विश्वव्यापी महामारी न आयी होती तो यह आंकड़ा 40.1 अरब मीट्रिक टन होता। इस तरह महामारी के 2020 में कार्बन उत्सर्जन में आई कमी धरती के जैवमंडल के लिए संतोष भरी एक बड़ी उपलब्धि है।
दुनिया में कार्बन उत्सर्जन में आई यह उत्सुकता वर्धक कमी अंतर्राष्ट्रीय अथवा राष्ट्रीय संस्थाओं की योजनाओं की सफलता का प्रतीक नहीं। यह तो बस एक्सीडेंटल है। लॉक डाउन में लोगों के घरों में बंद होने के कारण वे वातावरण में कार्बन के बादल उड़ाने वाले वाहनों और हवाई यात्राओं से वंचित रहे, जिससे कार्बन उत्सर्जन में आशातीत कमी आई। सार्वभौमिक गर्माहट के कुचक्र में फसाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग पांचवां हिस्सा पथ परिवहन, जैसे बसों, कारों आदि से आता है।
वैसे लॉक डाउन जलवायु परिवर्तन को नियंत्रण करने का कोई स्वीकार्य उपाय नहीं हो सकता, मगर जो नाटकीय परिवर्तन 2020 में हुआ, उसका श्रेय योजनाएं बनाने वाली स्नस्थाओं, सरकारों और वैज्ञानिकों को नहीं, केवल – और केवल – कोरोना वायरस को जाता है। कोरोना के डर से आदमी घरों में बंद हुआ तो प्रकृति को खुलकर साँस लेने का अवसर मिल गया। आदमी के डर के आगे पर्यावरण की जीत है!
दुनिया में कोविड-19 का कहर बढ़ने से महीनों पहले ही वैज्ञानिकों के समूह ने कार्बन उत्सर्जन में 4% से 7% तक कमी आने की भविष्यवाणी की थी। कोरोना वायरस की दूसरी लहर और मोटर वाहनों द्वारा यात्राओं में निरंतरआई कमी और हवाई यात्राओं के लगभग बंद हो जाने से कार्बन उत्सर्जन गिरावट 7% तक बढ़ गई।
कार्बन उत्सर्जन गिरावट का एक सच यह भी है कि अमेरिका में 12% और यूरोप में 11% की तुलना में चीन में इसमें केवल 1.7% की मामूली-सी कमी रिकॉर्ड की गयी। कारण यह था कि चीन ने कोविड-19 की स्थिति को ठीक से संभाल लिया और उसकी गाड़ियां और औद्योगिक इकाइयां लगभग निरंतर गतिशील रहीं।
2020 में कार्बन उत्सर्जन में आशातीत कमी के उपरांत भी दुनिया प्रति सेकंड लगभत 1075 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में उड़ेलती रही। उसी शोध पत्र में प्रकाशित 2019 के आंकड़े बताते हैं कि 2018 से 2019 तक मानव-निर्मित ऊष्मा-शोषक गैसों का उत्सर्जन केवल 0.1% बढ़ा है, जो एक या दो दशक पहले लगभग 3% वार्षिक छलांग की तुलना में बहुत कम था। जलवायु विशेषज्ञ यहाँ तक अनुमान लगा रहे हैं कि कोविड-19 महामारी के बाद उत्सर्जन बढ़ने की उम्मीद के साथ 2019 कार्बन प्रदूषण का चरम होगा, और उसके बाद यह घटता चला जाएगा। संयुक्त राष्ट्र के विकास निदेशक अचिम स्टीनर का कहना है, “यदि हम वैश्विक समुदाय का साथ लेते हैं तो हम निश्चित रूप से एक उत्सर्जन शिखर के बहुत समीप हैं।”
वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारी के बाद कार्बन उत्सर्जन फिर बढ़ेगा। यह स्वाभाविक भी है, क्योकि तब यात्राओं में तीव्रता आएगी, लोग खुलेपन के साथ रुके हुए सारे कार्यों का तेजी से निष्पादन करेंगे। लेकिन स्टैनफोर्ड वुड्स इंस्टिट्यूट के निदेशक क्रिस फील्ड का मानना है कि “महामारी के बाद कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा, मगर हमने कुछ सबक सीखे हैं जो भविष्य में उत्सर्जन में कमी लाने में मदद कर सकते हैं।“ कोविड-19 महामारी काल में पढ़ने-पढ़ाने से लेकर व्यवसाय तक ऑन-लाइन प्रणाली कितनी प्रचलन में आई है, और सेमिनारों की जगह वेबिनारों की तो बाढ़-सी ही आ गई है। अतः भविष्य में भी व्यवसायिक यात्राओं में पहले की अपेक्षा कम आवश्यकता होने की सम्भावना है, जिसका दूरगामी प्रभाव कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण में होगा।
Dr. Vir Singh
Former Professor of Environmental Science
GB Pant University of Agriculture and Technology